Anuparna Roy: कवि सोहन लाल द्विवेदी की पंक्तियाँ “लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती” आज पूरी तरह फिल्ममेकर अनुपर्णा रॉय पर फिट बैठती हैं। उन्होंने अपने संघर्ष और मेहनत से वह मुकाम हासिल किया है, जिसका सपना कई कलाकार देखते हैं। 2025 में हुए 82वें वेनिस फिल्म फेस्टिवल में अनुपर्णा रॉय को बेस्ट डायरेक्टर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इस उपलब्धि के साथ वे यह खिताब पाने वाली पहली भारतीय फिल्ममेकर बन गईं। यह भारत के लिए बेहद गर्व का पल है।
अनुपर्णा रॉय कौन हैं?
अनुपर्णा रॉय का जन्म और बचपन पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के एक छोटे से गांव नारायणपुर में हुआ। उन्होंने बर्दवान विश्वविद्यालय से ब्रिटिश इंग्लिश लिटरेचर में ग्रेजुएशन किया। पढ़ाई पूरी करने के बाद वे दिल्ली और मुंबई में कई कॉर्पोरेट कंपनियों में 9 से 5 की नौकरी करती रहीं। लेकिन उनके भीतर छुपा सिनेमा का जुनून उन्हें हमेशा अपनी ओर खींचता रहा।
अभिनय से शुरुआत
अनुपर्णा का रुझान बचपन से ही फिल्मों की ओर था। उन्होंने अभिनेता अनुपम खेर के एक्टर प्रीपेयर्स इंस्टीट्यूट से एक्टिंग डिप्लोमा किया।मुंबई में रहते हुए उन्होंने कई एक्टिंग वर्कशॉप्स में भी हिस्सा लिया।
डायरेक्शन की तरफ पहला कदम
- अनुपर्णा ने एक्टिंग से आगे बढ़कर फिल्म बनाने का फैसला किया।
- उन्होंने बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर अपनी पहली शॉर्ट फिल्म “रन टू द रिवर” (2023) बनाई।
- इस फिल्म को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी सराहना मिली।
इस सफलता ने उनके आत्मविश्वास को और मज़बूत कर दिया।
पहली फीचर फिल्म – Songs Of Forgotten Trees
अनुपर्णा ने अपनी पहली फीचर फिल्म के तौर पर “सॉन्ग्स ऑफ फॉरगॉटन ट्रीज” बनाई। इसकी मेकिंग और फंडिंग दोनों की जिम्मेदारी उन्होंने खुद उठाई। यह फिल्म उनके करियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुई और उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।
वेनिस में बना इतिहास
वेनिस फिल्म फेस्टिवल में उनकी फिल्म को ओरिजॉन्टी (Orizzonti) कैटेगरी में शामिल किया गया। यहीं अनुपर्णा को बेस्ट डायरेक्टर अवॉर्ड मिला। 82 साल के इतिहास में पहली बार किसी भारतीय फिल्ममेकर को यह सम्मान मिला है।
भारत में खुशी की लहर
अनुपर्णा रॉय की इस बड़ी उपलब्धि पर पूरा देश गर्व महसूस कर रहा है। उनकी सफलता यह संदेश देती है कि सपनों को सच करने के लिए जुनून जरूरी है। मेहनत और लगन से हर मंज़िल हासिल की जा सकती है।