Pitru Paksha 2025: हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा के बाद से लेकर अमावस्या तक पितृपक्ष मनाया जाता है। इस साल पितृपक्ष 7 सितंबर से शुरू होकर 21 सितंबर तक चलेगा। इसे महालया भी कहते हैं। इस समय लोग अपने पूर्वजों (पितरों) की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं।
तर्पण क्यों जरूरी है?
- श्राद्ध का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है तर्पण।
- तर्पण का अर्थ है – जल अर्पित करना।
- ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, जैसे बारिश का पानी अलग-अलग जगह गिरकर अलग-अलग रूप ले लेता है, उसी तरह तर्पण का जल भी पितरों को अलग-अलग रूप में भोजन और तृप्ति प्रदान करता है।
- देव योनि के पितरों को अमृत मिलता है।
- मनुष्य योनि के पितरों को अन्न मिलता है।
- पशु योनि के पितरों को चारा मिलता है।
- अन्य योनियों के पितरों को उनके अनुसार भोजन मिलता है।
- तर्पण से पितर प्रसन्न होते हैं और बदले में घर-परिवार पर उनकी कृपा बनी रहती है। कहा जाता है कि इससे नौकरी में तरक्की, पढ़ाई में सफलता और घर में सुख-समृद्धि आती है।
तर्पण के प्रकार
शास्त्रों में तर्पण के 6 मुख्य प्रकार बताए गए हैं:
- देव तर्पण – देवताओं के लिए
- ऋषि तर्पण – ऋषियों और संतों के लिए
- दिव्य मानव तर्पण – महान आत्माओं के लिए
- दिव्य पितृ तर्पण – दिवंगत पितरों के लिए
- यम तर्पण – यमराज के लिए
- मनुष्य-पितृ तर्पण – सामान्य पूर्वजों के लिए
तर्पण करने की विधि
तर्पण करते समय साफ-सफाई और श्रद्धा का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
- सामग्री तैयार करें –
- एक लोटे में साफ जल लें।
- उसमें दूध, जौ, चावल और गंगाजल मिलाएं।
- बैठने की विधि –
- दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके बैठें।
- बायां घुटना मोड़कर ज़मीन पर टिकाएं।
- जनेऊ पहनने वाले लोग उसे दाएं कंधे पर डालें।
- जल अर्पण (पितृ तीर्थ मुद्रा) –
- हाथ के अंगूठे की मदद से धीरे-धीरे जल नीचे गिराएं।
- पितरों को तीन-तीन अंजलि जल अर्पित करें।
- ध्यान रखने योग्य बातें –
- साफ कपड़े पहनें।
- पूरी श्रद्धा और आस्था से तर्पण करें।
- बिना श्रद्धा किए गए कर्म अधूरे और निष्फल माने जाते हैं।
पिंडदान का महत्व
तर्पण के साथ-साथ पिंडदान भी किया जाता है। इसमें आटे या चावल के गोले बनाकर पूर्वजों को अर्पित किए जाते हैं। इससे पितरों को तृप्ति मिलती है। परिवार पर पितरों का आशीर्वाद बना रहता है। जीवन में धन, विद्या, तरक्की और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।