जीत के बाद ललकार और हार के बाद हाहाकार.. सियासत का पुराना दस्तूर है.. लेकिन कांग्रेस पार्टी के लिए एक के बाद एक तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद ये हाहाकार कुछ ज्यादा ही असर दिखा रहा है.. हालांकि ये पहली बार नही है जब कांग्रेस में अकेले चुनाव लड़ने की मांग तेज हुई है.. इससे पहले भी कई नेता ऐसी बात चुके हैं.. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने तो पिछले साल लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में अकेले चुनाव लड़ने का दावा कर दिया था..। उन्होंने तो आने वाले पश्चिम बंगाल चुनाव में भी कांग्रेस की ओर से एकला चलो का संकेत दे दिया था.. लेकिन दिल्ली चुनाव के बाद ये तो साफ हो ही चुका है कि कांग्रेस की एकला चलो नीति की फिलहाल तो खैर नहीं..। किसी भी नतीजे को देखने को दो नजरिये हो सकते हैं.. गठबंधन में या अकेले चुनाव लड़ने की कांग्रेस की नीति को भी दोनों नजरियों से समझा जा सकता है..। ये सच है कि अकेले चुनाव लड़ने की वजह से दिल्ली चुनाव में कांग्रेस लगातार तीसरी बार जीरो पर आउट हो गई..। पर इस नतीजे का दूसरा पहलू भी मायने रखता है..