jalandhar sodal mela 2025: सोढल मेला पंजाब के जालंधर शहर का बहुत मशहूर और ऐतिहासिक मेला है। यह हर साल भाद्रपद (भादों) महीने की चतुर्दशी को लगता है। इस दिन को अनंत चतुर्दशी भी कहा जाता है, जिस पर भगवान विष्णु के अनंत रूपों की पूजा की जाती है। यही दिन गणेश उत्सव का आखिरी दिन भी होता है, जब गणेश विसर्जन किया जाता है। इस मौके पर लाखों श्रद्धालु जालंधर पहुंचकर बाबा सोढल के दर्शन और आशीर्वाद लेते हैं।
बाबा सोढल मंदिर का इतिहास
जालंधर शहर में स्थित श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर और तालाब बहुत प्राचीन हैं। पहले यहां चारों ओर घना जंगल था। दीवार में बाबा सोढल का रूप स्थापित है, जिसे बाद में मंदिर का स्वरूप दिया गया। यहां एक बड़ा तालाब है, जिसके चारों ओर पक्की सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। तालाब के बीच में एक गोल चबूतरे पर शेष नाग का स्वरूप स्थापित है। यह स्थान एक सिद्ध स्थल माना जाता है और लोग अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए यहां आते हैं।
मेले की खासियत
भाद्रपद की अनंत चतुर्दशी पर यहां विशेष मेला लगता है। इस दिन चड्ढा बिरादरी के जठेरे बाबा सोढल की पूजा में हर धर्म और समुदाय के लोग शामिल होते हैं। जब किसी की मन्नत पूरी होती है, तो लोग बैंड-बाजों के साथ बाबा जी के दरबार में आते हैं। बाबा जी को भेंट और 14 रोट का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इसमें से 7 रोट वापिस प्रसाद के रूप में दिए जाते हैं। यह प्रसाद घर की बेटी खा सकती है, लेकिन उसके पति और बच्चों को देना वर्जित माना जाता है।

बाबा सोढल जी की जन्म कथा
बहुत समय पहले, जहां आज मंदिर है, वहां एक संत जी की कुटिया और तालाब था। संत जी भोले भंडारी (भगवान शिव) के भक्त थे। लोग अपनी परेशानियां लेकर उनके पास आते थे। चड्ढा परिवार की बहू भी उनकी भक्त थी, लेकिन वह हमेशा उदास रहती थी। संत जी ने पूछा तो उसने बताया कि उसकी कोई संतान नहीं है और संतानहीन स्त्री का जीवन दुखों से भरा होता है।
संत की प्रार्थना और चमत्कार
संत जी ने ध्यान करके कहा कि भाग्य में संतान सुख नहीं है, लेकिन भोले भंडारी पर भरोसा रखो। उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की कि इस बहू की गोद भरनी चाहिए। भगवान शिव ने नाग देवता को आदेश दिया कि वे चड्ढा परिवार की बहू के गर्भ से जन्म लें। कुछ समय बाद इस परिवार में बाबा सोढल जी का जन्म हुआ।
बाबा सोढल जी का नाग रूप…
जब बाबा सोढल लगभग चार साल के थे, तब एक दिन अपनी मां के साथ कपड़े धोने तालाब पर गए। वहां बाबा भूख से परेशान हो गए और मां से घर चलकर भोजन बनाने को कहा। मां ने काम छोड़ने से मना कर दिया। तब बालक सोढल ने तालाब में छलांग लगा दी और नजरों से ओझल हो गए। मां रोने लगी। मां के रोने की आवाज सुनकर बाबा नाग देवता के रूप में तालाब से बाहर आए और कहा जो भी सच्चे मन से मेरी पूजा करेगा, उसकी मनोकामनाएं पूरी होंगी। इसके बाद बाबा फिर से तालाब में समा गए।
मंदिर का स्वरूप
बाबा सोढल के चमत्कार और संदेश से लोगों की श्रद्धा और विश्वास बढ़ गया। लोगों ने तालाब के पास एक कच्ची दीवार में उनकी मूर्ति स्थापित की। बाद में उसे मंदिर का रूप दे दिया गया।आज भी लाखों लोग इस मंदिर में दर्शन करने आते हैं और मन्नतें मांगते हैं।